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लुटा-पिटा पाकिस्तान क्यों फेल हुआ चीनी हथियारों की ताकत से

प्रभात संवाद, 17 मई, जयपुर @ मनोज वार्ष्णेय

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब सोमवार की देर शाम को राष्ट्र को संबोधित कर रहे थे तो जनमानस के मन में एक जिज्ञासा यह थी कि वह ऐसा क्या है जो जनता को बताने जा रहे हैं। चिंता इस बात पर भी थी कि कहीं वह कोई और घोषणा तो जनसामान्य के सामने नहीं लाने वाले? परंतु प्रधानमंत्री ने जब ऑपरेशन सिंदूर की सफलता और उसके विषय में जनता को बताया तो जो जहां पर भी उन्हें सुन रहा था उसने उनकी हर बात पर समर्थन प्रकट करते हुए खुद से कहा-प्रधानमंत्री जी हम आपके साथ हैं। इस पूरे संबोधन से एक बात साफ हुई कि ऑपरेशन सिंदूर अभी जारी है और यह पाकिस्तान के नेताओं की प्रतिक्रिया पर तय होगा कि उसकी पूर्णाहुति किस रूप में हो।
खैर,भारत के इतिहास में सबसे कम दिन चले सैन्य अभियान सिंदूर में पाकिस्तान ने जिस तरह से मुंह की खाई है,वह उसके अतिआत्मविश्वास का परिणाम है। इसके साथ ही एक बात यह भी पूरी दुनिया जानने की इच्छुक है कि पाकिस्तान को चीन ने जो सैन्य साजो-सामान चीन ने दिया,वह भारत के सामने टिक क्यों नहीं पाया? क्यों वह हल्की सी चोट में ही मिट्टी में मिल गया। उसी तरह से जिस तरह से प्रधानमंत्री ने कहा था-हम आतंक और आतंक को प्रश्रय देने वालों का मिट्टी में मिला देंगे। भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों के अपने-अपने मित्र-रक्षक-सहयोगी राष्ट्र हैं। भारत को चीन,पाकिस्तान जैसे देशों को छोड़कर कमोवेश हर राष्ट्र सहयोग और समर्थन देता है। अमेरिका, फ्रांस, इजरायल,रूस जैसे देशों से भारत सैन्य सामग्री खरीदता है और पाकिस्तान बहुत कुछ चीन से। ऑपरेशन सिंदूर जब आरंभ हुआ तो चीन के हथियारों के दम पर पाकिस्तान ने भारत से मुकाबला करने का दुस्साहस किया। यहां तक उसके कुछ बड़बोले नेता यहां तक कहने लगे कि हमने परमाणु बम देखने के लिए नहीं बनाए हैं। मतलब साफ था कि वह उसे भी प्रयोग करने की गीदड़ भभकी दे रहा था।
जैसा कि दुनिया में कहा जाता है कि यह चीनी माल है और उसकी गारंटी पैसे देने तक ही होती है,ठीक वैसा ही चीन हथियारों के साथ हुआ। पाकिस्तान ने चीन से एचक्यू9-एयर डिफेंस सिस्टम खरीदा। फिर उसी के दम पर उसने भारत से टक्कर लेने की सोची पर भारत सामने यह सिस्टम तहस-नहस हो गया। यह कहा जा सकता है कि पाकिस्तान का जैसे ही यह सिस्टम बर्बाद हुआ उसे समझ में आ गया कि वह जबरदस्ती लड़ रहा है। पाकिस्तान से चीन ने जो मिसाइलें खरीदीं वह भी अपनी निर्धारित दूरी पूरी नहीं कर पाई और भारतीय प्रतिरोध के हल्के झटकों से ही समाप्त हो गई। चीन के कुछ जेट भी पाकिस्तान को बचा नहीं पाए। कहा यह भी जा रहा है कि पाकिस्तान ने हथियार जरूर ले लिए पर उन्हें चलाने की सलीका उसने सीखा ही नहंी।
यहां पर चीन और पाकिस्तान के गठजोड़ तथा हथियारों से हुए नुकसान का आंकलन करना उद्ेश्य नहीं है,प्रश्र यह है कि चीन ने पाकिस्तान को जो हथियार सप्लाई किए,क्या उनकी क्वालिटी ठीक वैसी ही थी जैसी दूसरे देशों में आम जरूरत की सप्लाई होने वाली वस्तुओं की होती है? क्या उसने पाकिस्तान को यह बताया था कि वह जो सैन्य सामान उसे दे रहा है वह भारत के सैन्य सामान के सामने कितना शक्तिशाली है? अगर बताया था तो वह फिर फेल $कयों हुआ? कहीं ऐसा तो नहीं उसने आम वस्तुओं की तरह यह सैन्य साजों-सामान भी उसे सप्लाई किया हो। वैसे अगर पाकिस्तान में इन्हें प्रयोग करने वाले लोग विशेषज्ञ नहीं हैं तो शंका का समाधान होना चाहिए।
ऑपरेशन सिंदूर,जो अभी सिर्फ स्थगित हुआ है और पाकिस्तान की हरकतों पर निर्भर करेगा कि उसकी पूर्णाहुति किस रूप में हो में पाकिस्तान की शर्मनाक हार ने पाकिस्तान के सामने दो प्रश्न रखें हैं। पहला यह कि वह चीन या तुर्किए के हथियारों के दम पर भारत को कब तक आतंक फैला कर डराता रहेगा? क्या वह आत्ममंथन करके खुद को आतंक से दूर करके सैन्य समर्थ बनाएगा या फिर दूसरों के हथियारों के दम पर पिटता रहेगा। दूसरा महत्वपूर्ण प्रश्र यह है कि वह भारत की ताकत के सामने खुद को टिका रखने के लिए क्या कदम उठाएगाï ? वैसे बंटवारे के बाद से ही वह हमेशा भारत से पिटता-कुटता रहा है और फिर से दूसरों की दी हुई भीख से आतंक को पालता रहा है। इसके विपरीत भारत,पाकिस्तान से सैन्य ही नहीं योजना बनाने में कम से कम दो सौ गुना आगे है। ऑपरेशन सिंदूर इसी का उदाहरण है। जब वह इसी फिराक में था कि भारत क्या कदम उठाएगा,मेरे पास तो परमाणु बम है मैं उसे डरा दूंगा तब भारत कूटनीतिक तथा सामरिक योजना से अपनी रणनीति को लागू कर रहा था।
फिलहाल पाकिस्तान के सामने अब भारत ही नहीं उसके पाले हुए आतंकवादी,बलूच विदोहियों की मजबूत आर्मी भी है जिससे उसे जूझना होगा। वह भी तब जब उसकी सैन्य क्षमता लगभग बरवाद हो चुकी है और सिर्फ एक परमाणु बम ही है जो उसे ब्लैकमेलिंग हथियार के रूप में महफूज रखेगा। पाकिस्तान यह भी जानता है कि उसे चीन से फिर से हथियार अगर खरीदने पड़े तो उसके लिए पैसा कहां से लाएगा? बलूचों के आतंक से बचने के लिए भी सेना का मनोबल बनाए रखना उसकी नई समस्या है। वह भी जब बलूचों ने कहा है कि अगर भारत सहयोग करे तो वह पाक का आतंक हमेशा के लिए मिटा देंगे। यूं जिस चीन के चीनी माल से वह मारने-मरने के लिए तत्पर है उसके लिए चीन भी अब इस बात पर मंथन करेगा कि आखिर भारत ने कैसे उसके सैन्य साजों-सामान को मिट्टी में मिला दिया। कहना ना होगा कि सभी यह जानन के उत्सुक हैं कि आखिर पाकिस्तान को किस तरह का चीनी माल हथियार सप्लाई हुए?

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