ओपिनियन

भारत में महिलाओं की वास्तविक स्थिति

प्रभात संवाद, 25 अगस्त, जयपुर । भिवानी, हरियाणा में हुई मनीषा हत्याकांड ने यह सिद्ध कर दिया है कि कलयुग अब अपने अंतिम पड़ाव पर पहुँच चुका है। ऐसी अमानवीय घटना किसी सामान्य मानव का कृत्य नहीं हो सकती, इसे वही अंजाम देता है । जिसने मानव होने के मायनों को ही भुला दिया है। भारतीय भूमि सदैव देवियों की भूमि रही है। यहाँ पुरुष पृथ्वी पूजन पर अपनी इच्छापूर्ति के लिए नारी स्वरूप की आराधना करता है, किंतु वही पुरुष यह भूल जाता है कि यह नारी हमारी माँ, बहन और पत्नी भी है। ऐसे अपराध न केवल नारी के अपमान हैं, बल्कि पूरे समाज और सभ्यता के लिए कलंक हैं। आज जब हम विकसित भारत 2047 की बातें करते हैं, तो क्या उसका उद्देश्य स्त्रियों की स्वतंत्रता छीनकर उन्हें दरिंदगी सहने पर मजबूर करना है ? स्मरण रहे, वेदों में स्पष्ट लिखा है—

“जहाँ नारी का सम्मान नहीं, वहाँ सुख-समृद्धि कभी नहीं आती।”

यह भारत, देवभूमि है। परंतु आज यहाँ ऐसी घटनाएँ हो रही हैं मानो हम आदिवासी युग की ओर लौट रहे हों। मनीषा, निर्भया, प्रियंका रेड्डी और ममता जैसी बेटियाँ आज भी इंसाफ के लिए खड़ी हैं। हर लड़की में वही पीड़ा बसती है, क्योंकि हमें नहीं पता कि अगली मनीषा कौन होगी। इतनी भयावह घटनाओं के बावजूद राजनीति में बैठे बड़े-बड़े नेता राम राज्य की बातें करते हैं। यदि मंदिरों और दंगों पर खर्च होने वाले धन का मात्र 10% भी समाज सुधार, महिला उत्थान और युवाओं के संस्कार पर लगाया जाता, तो शायद भारतीय संस्कृति आज इतनी तार-तार न होती। मनीषा जैसी 19 वर्षीय बेटी को निर्मम हत्या के बाद खेतों में मृत नहीं पाया जाता, यदि समाज में नारी की इज्जत करना सिखाया जाता और अपराधियों को बचाने के बजाय उन्हें सरेआम दंडित किया जाता।

आज स्थिति यह है कि आम आदमी नेता और प्रशासन के दबाव में दबा हुआ है। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आम जनता के पास खोने के लिए कुछ नहीं है। इसलिए समाज को चाहिए कि वह अन्याय और अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाए और अपनी बहनों की सुरक्षा के लिए संगठित हो।

इतिहास में हमारे विद्यार्थी वीरगाथाएँ सुनते हैं, पर आज हमें यह भी बताना पड़ेगा कि अंग्रेज़ों और मुगलों से अधिक हमारी बहनों की अस्मिता हमारे ही देशवासियों के हाथों लूटी गई है। किसी को दहेज के लिए जला दिया गया, किसी को पैसों के लिए टुकड़े-टुकड़े कर फ्रिज में रखा गया, तो किसी को आत्महत्या और देह व्यापार के लिए मजबूर किया गया। यदि यही तथाकथित राम राज्य है तो हमें इसे स्वीकार नहीं करना। हमें उस ग्रामीण जीवन की ओर लौटना होगा जहाँ आधुनिक स्वार्थ नहीं था और जहाँ माँ-बहनों का सम्मान करना जीवन का संस्कार था। मैं इस पूरे भारत से कहना चाहती हूँ कि महिलाओं को न्याय केवल मोमबत्ती जलाकर नहीं मिल सकता। अपराधियों को बिना विलंब और बिना बचाव के सरेआम मृत्युदंड दिया जाए, तभी नारीत्व की सुरक्षा सुनिश्चित हो सकती है। तभी हर महिला गर्व से कह सकेगी कि वह इस समाज और देश में सुरक्षित है।

याद रखिए— यदि नारी असुरक्षित है तो पुरुष भी कभी सुरक्षित नहीं रह सकता। जिस दिन महिलाओं ने अपनी सुरक्षा अपने हाथों में ले ली, उस दिन पुरुष अस्तित्व भी संकट में पड़ जाएगा।

डॉ सरोज जाखड़

समाजशास्त्री

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